पिया तुम चन्दन, मैं तुमरी लता, तुम हो दीया और मैं तुमरी बाती,
जाने ऐसी कितनी बातें कह कह कर, चिड़िया रोज रिझाती अपने चिड़े को.
चिड़ा हँसता, पर कुछ न कहता, चिड़िया की मासूमियत से परिचित था वो!
डरता और हमेशा कहता, अब जब भी बाहर निकलना,
ध्यान देना, फिर से न आया हो....
पर बहेलिया भी तो शातिर था,
कैसे जाने देता चिड़िया को ?
राह देखता, कब चिड़ा घर पे न हो....
फिर एक दिन उसकी किस्मत जागी,
देखा, चिड़ा निकला कहीं जाने को.
भागा घर, लाकर बिछाया सबसे महीन जाल,
नए चमकते दाने डाले और
राह देखने लगा....
उसे अपने भाग्य से ज्यादा,
चिड़िया की मासूमियत पे भरोसा था....
थोड़ी देर बाद, सारे बच्चों को लेकर
चिड़िया दाना चुगने बाहर निकली.
"माँ, माँ वो देखो, इतने सारे नए नए दाने,
चलो न मिल कर सारे ले लें".
चिड़िया सहमी, ऐसा कैसे?
और चारोँ ओर देखा....
दूर बैठे बहेलिया पे उसकी नज़र पड़ गयी,
घबरायी और चिल्लायी -
"चलो भागो सब घर के अन्दर,
नहीं चुगना हमें ये दाना".
सारे बच्चों को समेट, वापस भागी....
सबको जाता देख, बहेलिया लपकते हुए पास आया.
कान पकड़े, गलती मानी, "बदल चुका हूँ मैं,
मेरा विश्वास करो, पिछली गलती का ही प्रायश्चित करने आया हूँ"....
इतना रोया, इतना मनाया, चिड़िया को दया आ ही गयी,
सोचा, होती ही रहती हैं गलतियाँ....
भोली चिड़िया और उसके बच्चे
पिछली सारी बातें भूल गए,
मासूमियत उनका स्वभाव था,
विश्वास करना उनकी फितरत,
क्षमा करना उनकी आदत,
उनको तो बस प्यार करना ही आता था...
“माँ देखो उसकी मुस्कान कैसी बदली बदली सी है, है न?
लगता है, गलतियों पे बहुत पछताया होगा, एक मौका दे दो न, माँ ”.
जैसी चिड़िया, वैसे ही मासूम उसके बच्चे.
और चिड़िया मान गयी.
चिड़िया ने चारोँ ओर देखा,
"ये चिड़ा भी न, जाने कहाँ चला गया....
अब तो दानो की कोई कमी ही नहीं,
ये बहेलिया तो अब अपना ही है न"....
फिर भी,
थोड़ा सहमे, थोड़ा सकुचाये, सब एक दूसरे को थामे,
चल पड़े दानो की ओर....
बहेलिया बोला “डरो नहीं, देखो ये सारे दाने तुम्हारे लिए ही हैं,
ले लो, जितना जी चाहे, ले लो, डरो नहीं,
चलो मैं अपनी आँखे मूँद लेता हूँ ”....
सबने समझा, अपने किये पर कितना पछता रहा है
और धीरे धीरे, सब दाने चुगने पहुँच गए,
बहेलिया के पास, निश्चिंत....
पहुचने भर की देर थी,
बहेलिया ने मिची आँखें खोली,
एक ही झटके से जाल खिंची
और सब....
उसने जाल समेटा,
झोले का मुंह बंद किया, दाने उठाये और चल पड़ा....
फिर कभी, किसी ने चिड़िया के गीत नहीं सुने.
कहते हैं,
चिड़ा आया, बहुत ढूँढा अपनी चिड़िया को
और फिर उसने भी ख़ुदकुशी कर ली....
uff!very painful story ...!!!!
ReplyDeleteचिड़िया की मासूमियत - सबकुछ ख़त्म हो गया
ReplyDeleteकिसी की इस फितरत ने किसी की खुशियां लीं ...
ReplyDeleteकल 04/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, 2011 बीता नहीं है ... !
धन्यवाद!
ओह बेहद मार्मिक, आज भी कितने मासूम फंसते है इस जाल में। आभार। बहुत सटीक लिखा।
ReplyDeleteउसे अपने भाग्य से ज्यादा,
ReplyDeleteचिड़िया की मासूमियत पे भरोसा था....
बहुत अच्छी रचना...
मार्मिक ...
ReplyDeletekavita ke andaaz mein kahani...sundar....
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
दुःख बहेलिए के किये का करें,
ReplyDeleteया चिड़िया के मासूमियत पे?
क्षमा करें, पर अक्सर हम शब्दों का,
मन मुताबिक अर्थ निकाल लेते हैं....
हमारा प्रश्न होना चाहिए,
मासूमियत, किस हद तक?
बहेलिये सरीके को, कहाँ तक?
मासूम होना और बेवकूफ होने में,
अंतर करना ही होगा.
वर्ना मासूमियत बदनाम हो जाएगी....
क्या ये कहानी अपनी मासूमियत छोड़ने की प्रेरणा देती है?
मेरी समझ से तो बिलकुल नहीं!
अफ़सोस की आज सब बच्चों को practical बना रहे,
उनकी मासूमियत को बेवकूफी बता रहे,
जिससे उनकी हंसी छीन गयी है,
बेचारे घबराये घबराये से सबसे मिलते है,
सारे समय अपने बचाव पे ही ध्यान लगा होता है,
कोई आत्मिक सम्बन्ध नहीं बन पा रहे,
पूरी पीढ़ी आंतरिक अविश्वास के कारण,
एक अकेलेपन को जी रही है....
हमे 'सजगता' सीखनी और सिखानी होगी,
उन्हें और खुद को डरा नहीं देना है,
फिर जीवन में बचेगा ही क्या?
सजगता ही जीवन को सुन्दर और सरल और सामायिक बनाती है.
- सुमन सिन्हा
आधुनिक सन्दर्भ में बड़े ही मार्मिक ढंग से हितोपदेश की कहानी आपने इस कविता के माध्यम से प्रस्तुत की है.! बहुत ही अच्छी कविता है!!
ReplyDeleteएक संदेशपरक रचना ....
ReplyDeleteमासूम होना अच्छा है, निर्मलता भूषण है ..मगर बेवकूफी कदापि भूषण नहीं है .
कविता ममन्तक इस लिए है कि इसमें मासूमियत और जालसाजी कि टक्कर में मासूमियत का क़त्ल हुआ है ..
अच्छी रचना के लिए बधाई !
ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति, बधाई.
ReplyDeleteपधारें मेरे ब्लॉग meri kavitayen पर भी, मुझे आपके स्नेहाशीष की प्रतीक्षा है.
ओह! कितना आपसी प्रेम था दोनों में ....इंसानी प्रेम की फितरत को चुनौती देती सार्थक चिंतनशील रचना ...
ReplyDelete.. प्रस्तुति हेतु आभार!