Wednesday, January 11, 2012
संत का घर है राजा का महल नहीं
आज दिल के बहुत करीब एक सूफी कहानी लेकर आया हूँ:
किसी जंगल में एक सूफी संत अपनी पत्नी के साथ रहता था।
एक रात, जोर की बारिश हो रही थी। लगभग आधी रात को किसी ने उनका दरवाजा खटखटाया।
संत ने पत्नी से, जो की दरवाजे के पास सो रही थी, दरवाजा खोल कर देखने को कहा। पत्नी ने झल्ला कर कहा - "हमारी झोपड़ी इतनी छोटी है, हम दोनों के ही सोने की जगह है, अगर कोई हुआ तो हम उसकी क्या मदद कर सकते हैं?
संत ने कहा " ये एक संत का घर है, राजा का महल नहीं जो छोटा पड़ जाये। जरुर कोई भटका राही होगा। ये जंगल खूंखार जानवरों से भरा है, दरवाजा खोल कर उसे अन्दर ले लो।"
राही ही था, उसने बताया कि वो अँधेरे के कारण रास्ता भटक गया था " वर्ना इतनी रात को आप लोगों को परेशान
नहीं करता।"
संत ने कहा "अन्दर आ जाओ दो लोगों के सोने की जगह है, इसमें तीन तो आराम से बैठ सकते हैं। हम लोग तो कहीं जाते वाते नहीं, तुमसे ही दुनिया की कुछ खबर मिल जाएगी।"
तीनो आराम से बैठ गए और बातें करने लगे। थोड़ी देर बाद फिर दस्तक हुई। संत ने राही से दरवाजा खोल कर देखने को कहा तो राही नाराज होकर बोला - "यहाँ तीन लोग पहले से बैठे हैं, हम अब क्या मदद कर सकते हैं?"
संत - "मत भूलो थोड़ी देर पहले तुम उसी स्थिति में थे, अरे ये राजा का महल नहीं जो कितना भी बड़ा हो, हमेशा छोटा पड़ जाता है, संत की कुटिया है, सब के लिए जगह हो जाती है, दरवाजा खोलो और उसे अन्दर ले लो। अभी तक हम फ़ैल कर बैठे थे, अब हम एक दूसरे के थोड़ा नजदीक बैठ जायेंगे, एक दूसरे से थोड़ी गर्मी भी मिलती रहेगी।"
पहले राही ने दरवाजा खोल दिया तो भटका राही क्षमा मांगते हुए अन्दर आ गया। संत आराम से गाते रहा।
थोड़ी देर बात फिर दस्तक हुई, सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे। सबको मालूम था कोई राही ही होगा और संत अन्दर लेने को कहेगा ही।
संत ने समझाया - "अब तक हम चारोँ पास पास बैठे थे, अब हम आराम से खड़े हो जायेंगे।"
दरवाजा खोल कर नए राही को भी अन्दर ले लिया गया। थोड़ी देर बाद दरवाजे पर फिर कुछ आवाज हुई, पर आवाज कुछ अलग तरह की थी। सबने हैरत से संत की ओर देखने लगे।
संत ने बताया - " पास ही एक गधा रहता है, रोज रात मेरे गाने सुनने आता है, वही होगा, बेचारा भींग रहा होगा, दरवाजा खोल कर उसे अन्दर ले लो। अरे इसमें परेशानी क्या है? मत भूलो थोड़ी देर पहले तुम सब किस स्थिति में थे। थोड़ी देर की ही तो बात है, सुबह होने ही वाली है।"
दरवाजा खोल कर गधे को भी अन्दर ले लिया गया। सब अब गधे के चारोँ ओर खड़े हो गए, संत बेफिक्री से गाते रहा
और गधा अपने अंदाज़ में सुनता रहा। सुबह होने पर सबने संत का धन्यवाद किया।
संत ने बड़े प्यार से कहा "धन्यवाद् कैसा? आप सब हमारे घर आये, हमे कृतार्थ किया, आपके आने से हम ही अनुग्रहित हुए हैं।"
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बहुत सुन्दर और प्रेरक कथा...
ReplyDeleteराजा होना तो सब चाहते हैं,
ReplyDeleteसंत होने में ही डर लगता है.
जबकि संत ही सही मायने में राजा होता है -
क्यूँकी सारा संसार उसका अपना होता है.
राजा बेचारा तो चहारदीवारी के भीतर सिकुड़ के रह जाता है - हमेशा असुरक्षित.
वहीँ संत ना कल बेचारा था
ना आज और ना आने वाले कल में.
वही असली सत्ता को जीता है
बस उसकी कमान नहीं दिखती.
प्रेरक कहानी
ReplyDeleteसब जुड़ते रहें, जीवन चलता रहे।
ReplyDeleteसार्थक कहानी....
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteप्रेरक कथा !
संत बेफिक्री से गाते रहे ...विचारणीय एवं प्रेरणात्मक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteखुले मन में जो विस्तार होता है , वह संकीर्णता में कहाँ !
ReplyDeleteसुंदर कथा ...सूफी सन्देश देती हुई ...
ReplyDeleteआपके इस उत्कृष्ठ लेखन का आभार ..
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