Sunday, March 11, 2012

विडम्बना

शब्दों के साथ
हम कुछ ऐसे बड़े हुए
कि शब्दों को बिना खाए - चबाये
अब कुछ रास ही नहीं आता ....

शब्दों को ना सुने
ना सुनाये
ना गुने,   
तो जैसे सब ख़त्म होता जान पड़ता है....

शब्दों का कोलाहल ही अब जीवन है
शब्दों के साथ ही अब नींद आती है
शब्दों से ही अब अपने जिन्दा होने का विश्वास बनता है....  

शब्दों के घोंसले में ही अब सारे सम्बन्ध रहते हैं
शब्दों से ही अब संबंधों की सार्थकता आंकी जाती है
शब्दों से ही अब सुख - दुःख समझे जाते हैं....
शब्दों में ही सारे मोल भाव
शब्द न हुए
currency हो गए....

विडम्बना ही तो है
कुछ महसूस भी करना हो
तो अब शब्दों की ही जरुरत पड़ती है....

शब्द चाहिए अब सांसों को सुनने - सुनाने के लिए
शब्द चाहिए अब बोझिल पलकों को उठने - झुकाने के लिए
शब्द चाहिए शब्द
जिस्मों को अब एक हो जाने के लिए ....  

शब्द शब्द शब्द ....

जाने हम कहाँ खो गए
शब्दों के इस जाल में....

Sunday, March 4, 2012

रहना और जीना


'रहने' के लिए क्या चाहिए - पैसा !
कर दे जो 'जरूरतें'
रोटी कपड़ा मकान की पूरी - ....

मिल जाये जिनसे -
नाम, यश, ख्याति....
          

मगर
'जीने' के लिए ?

इतने ही नहीं हैं काफी -
क्या नहीं चाहोगे मिले
आनंद सुख शांति ????

सोचो बंधू सोचो
कुछ और भूल तो नहीं रहे ?    
......
......
......
......
......
......
......

वाह बंधू वाह
प्यार को ही भूल गए !!!!


'प्यार' बगैर 'जीना' कहाँ ?

प्यार आवश्यकता नहीं
'अस्तित्व' है हमारा .... 


प्यार बिना सुख का करोगे क्या ?
प्यार बिना शांति मिलेगी क्या ?
प्यार बिना आनंद कैसा ?????  

'रह' तो लोगे ही बंधू
पर ....
'जीओगे' कैसे ?
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होली के शुभ अवसर पर
बंधू ढ़ेर सारी शुभकामनाएं और
बहुत सारा 'प्याररररररररर'.....


.... कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा
भानुमती का कुम्बा जोड़ा
ओये जोगीरा सारा रा रा .....
सारा रा रा
सारा रा रा  
रा  रा  रा  रा.....  
बुरा ना मानो होली है
होली है भाई
होली है ......