Tuesday, October 12, 2010

शिव और शक्ति

शिव और शक्ति

भोले शिव - 
और संहार करता ?


शिव के संहार में सृजन के बीज हैं,
पक्षपात विहीन कृत्य....
क्यूंकि
कई बार कोई विकल्प ही नहीं होता,
क्यूंकि विकृति हद से गुजर के संस्कार बन जाती है....

कहते हैं जब शिव विष का पान कर रहे थे
तो शक्ति ने उसे गले में ही रोक दिया था,
हृदय में उतरने नहीं दिया,
शिव का कंठ जरुर नीला हो गया
पर संसार का भोलापन बच गया....


शिव और शक्ति  -
भोलापन और प्रेम -



सृष्टि के मूल हैं....

इस महाशिवरात्रि के पर्व में
आइये
हम भी अआतं अवलोकन करें, 
शिव और शक्ति को जगाएं,
क्यूंकि उनके बिना
जीवन में उत्सव कहाँ ? 

3 comments:

  1. बहत सुन्दर कविता ,बधाई.

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  2. बहुत खूबसूरत रचना ...


    एक बार यहाँ भी देखें ...

    http://charchamanch.blogspot.com/2010/10/20-304.html

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  3. जब असत्य सीमायें लाँघ जाता है
    तो उसका वापस लौटना असंभव हो जाता है
    ..... असत्य अतिक्रमण करता है , ये उसका स्वभाव है और स्वभाव असत्य का तो बिल्कुल ही नहीं बदलता ...

    विकृति हद से गुजरने के बाद संस्कार बन जाती है
    गुलाब कांटे तो बन सकते हैं
    पर कांटे कभी गुलाब नहीं बन पाते
    ........
    गुलाब गुलाब ही रहता है , परिस्थिति उसके ऊपर हावी होती है, पर गुलाब
    कभी अपना स्वरुप नहीं खोता है ...

    सृजन के लिए भोलापन चाहिए
    और भोलापन के श्रोत हैं शिव.... मन की निश्छलता ही सृजन करती है , सत्य है !

    आइये इस पर्व में हम अपने अन्दर झांके
    शिव और शक्ति को तलाशें
    ......
    तलाश ?
    जिसके पास सृजन शक्ति है, जो विध्वंस से परे है ,
    शिवशक्ति वहीँ हैं

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