कहते हो सच जानना है
कौन सा सच?
जिसे मैं दुनिया को पेश करता हूँ
या वो
जिसे मैं जीता हूँ....
व्यर्थ है
मत जानो किसी का सच
क्यूंकि सच क्रूर होता है
सच ही तो जानने चला था एथेंस का सत्यार्थी
और ऑंखें खो कर कीमत चुकाई थी .....
फिर मेरा सच
सिर्फ मेरा ही हो सकता है
मेरे सच को तुम
सच मान भी कैसे सकते हो
क्या निकल पाओगे अपनी मान्यताओं से
जिनसे तुमने अपनी पहचान बना ली है....
सच तो तुम्हारे चारोँ ओर
हर समय फैला है
तुमने ही आँखें मूँद रखी हैं
क्यूँकी अब सच कि नहीं
झूट की आदत हो गयी है....
कहो तो तुम्हारे झूट को ही
अपना सच बता दूँ
अपना झूठ मुझसे सुन कर
तुम्हारा सच जानने का भ्रम भी बना रह जायेगा ....
मत जानो किसी का सच
क्यूँकी फिर
हममे से एक ही रह जायेगा
तुम्हारे सच को अपना कह
मैं मिट जाऊं
या मेरा सच जान
तुम्हारा वजूद मिट जाये
बात तो एक ही है न ....
अपने सच के साथ ख़ुशी से जियो
जैसे सब जीते हैं
क्यूँ मिटाना अपने ही हाथों अपनी हस्ती को
संसार यूँही चलता आया है
चलता रहेगा
कौन किसी को कभी अपना सच दिखा पाया है
कौन कभी किसी का सच जान पाया है
bilkul sahi kaha, sansaaar yunhi chalta raha hai yunhi chalta rahega... aur log wahi sach maante hai jo unhe dikhai deta hai...
ReplyDeleteawesomely written and well execution...
सुन्दर कविता...
ReplyDeleteसत्य !!!
ReplyDeleteएक गहन गंभीर आवरण
जिसे जानना , मानना कठिन नहीं
पर आसान बिल्कुल ही नहीं, क्योंकि सत्य को स्वीकार करने में अधिकांश व्यक्ति को अपनी हार लगती है और वह स्वयं एक झूठा स्वरुप तैयार करता है और हमारे जीवन में मुहर की तरह लगा देता है
और कहता है 'स्वीकार करो'....... सत्य के आगे हम उस झूठ को नहीं स्वीकार करते और अपने सत्य का रास्ता अकेले ही तय करते हैं
........
मन की कई रातों में करवटें लेता व्यक्ति ही लिख पाता है यह , और एथेंस का सत्यार्थी उदाहरण बनता है
sach kaha.. Koi kisi ka sach nhi jaan.na chahta, sach bahut kroor hota hai..sundar rachna
ReplyDelete