Sunday, December 19, 2010

लक्ष्य साधना है...






अर्जुन आज भी
मेरे पास गांडीव रख
दुविधा में है !
मैं कर्मठ,अविचल,अविरल
सार के सन्दर्भ में हूँ

'अर्जुन इसे युद्ध का नाम मत दो
यह मात्र अन्याय का विरोध है
जो हर काल में ज़रूरी है ...'

' प्रश्न के किस महासागर में हो अर्जुन ?
द्यूत क्रीडा के समय तो तुम जीत के नशे में रहे
कुछ नहीं सोचा
और आज प्रश्नों के भंवर में अटके हुए हो ...'

'प्रश्नों के महासागर में तो जन्म लेते
मैं रहा अर्जुन ...
रिश्तों का अदभुत मायाजाल
और मैं अबोध !
देवकी की गोद से निकल
यशोदा के आँचल तले
मैं जितना भाग्यवान रहा
उतना ही कटघरे में रहा ...
किसने नहीं पूछा ,
'किसे माँ कहोगे '
अर्जुन , क्या यह प्रश्न
दोनों माओं के लिए
अनुचित न था ?'

'अन्याय के विरोध में
१४ वर्षीय मैं कृष्ण ,
मामा के समक्ष था ....
तो कहो अर्जुन ,
यह रिश्ता महत्वपूर्ण था
या मुझसे पहले मारे गए
नवजात मेरे अपने ?
....
इन अन्यायों के आधार पर ही
कंस मामा की मृत्यु तय थी
रिश्तों का कैसा व्यर्थ प्रश्न?'
'कितनी व्याकुलता लिए
कितनी आसानी से
तुमने गांडीव रख दिया
और असहाय हो गए !
अर्जुन ,
रथ से पलायन मैं भी कर सकता हूँ
अपने स्वरुप को सीमाबद्ध कर सकता हूँ
सुदर्शन चक्र हटा सकता हूँ ...
क्योंकि मेरा संबंध
इस कुरुक्षेत्र के दोनों छोर पर है
....
न्याय के लिए मैं सारथी हो सकता हूँ
तो अर्जुन
तुम्हें बस यह गांडीव उठाना है
और लक्ष्य साधना है...'


........

19 comments:

  1. विश्वास करो या न करो ,
    सारथी हमेशा श्री कृष्ण बने
    दिया उपदेश............
    क्या है छल! क्या है भ्रम!........
    विश्वास भरने को नरक का द्वार भी दिखाया...
    जिन्हें महारथी माना था,
    उनका असली रूप दिखाया
    ....
    निस्सारता का पाठ पढाकर
    हारे को हरिनाम दिया...........

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  2. बहुत सुन्दर रचना|

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  3. न्याय के लिए मैं सारथी हो सकता हूँ
    तो अर्जुन
    तुम्हें बस यह गांडीव उठाना है
    और लक्ष्य साधना है...'

    बहुत सार्थक रचना ...आज की परिस्थिति में सोचें तो न तो न्याय दिखता है और न ही सारथी ...

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  4. कृष्ण का कर्तव्यनिष्ठ सन्देश ..........बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.

    सृजन शिखर पर आपका स्वागत है

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  5. गीता से प्रेरित बहुत सुन्दर कविता ! सारथी का महत्व बहुत है !

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  6. अगर कृष्ण जी जैसा सारथी मिल जाये तो जीवन धन्य हो जाये ।

    बहुत लाजबाव अभिव्यक्ति है। बहुत बहुत आभार सुमन जी।

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  7. 'अर्जुन इसे युद्ध का नाम मत दो
    यह मात्र अन्याय का विरोध है
    जो हर काल में ज़रूरी है ...'

    आपकी लेखनी आपके व्यक्तित्व का पता देती है ......

    प्रभाव अलग अलग
    गुलाब सौन्दर्य
    गेंहू - आटे से रोटी
    कैक्टस हर हाल में खड़ा
    चुभता हुआ

    अद्भुत .....
    पढ़ा है .....आगे समझना है ......!!

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  8. arjun jab bhaiyya khel rahe the juwa kyon nahi roka

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  9. रथ से पलायन मैं भी कर सकता हूँ
    अपने स्वरुप को सीमाबद्ध कर सकता हूँ
    सुदर्शन चक्र हटा सकता हूँ ...
    क्योंकि मेरा संबंध
    इस कुरुक्षेत्र के दोनों छोर पर है

    sach to kaha krishna ne........:)
    kitna swabhawik likhte ho aap...
    hats off........

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  10. अन्याय से लड़्ने के लिए गांदीव उठाना ही पड़ता है !

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  11. बहुत लाजबाव अभिव्यक्ति है।

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  12. behad shaandar kavya hai....bohot khoob

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  13. 'अर्जुन इसे युद्ध का नाम मत दो
    यह मात्र अन्याय का विरोध है
    जो हर काल में ज़रूरी है ...'
    क्या आज भी कोई सारथी कृष्ण बन कर आयेगा जो इस देश की डूबती नाव को पार लगा सके। सुन्दर गीता सन्देश। बधाई।

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  14. true.. Yahi seekh di thi shri krishna ne.. Laksya se bhatke vyakti ko margdarshan krti aapki rachna, bahut acchi lagi. :)

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  15. 'अर्जुन इसे युद्ध का नाम मत दो
    यह मात्र अन्याय का विरोध है
    जो हर काल में ज़रूरी है ...'

    बहुत ही सुन्‍दर लेखन ...हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई ..।

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