प्रश्नों के कटघरे से निकलने की चाह में
मैंने सौ प्रतिशत का हिसाब किया है !
इस सौ प्रतिशत ने
मेरी ज़िन्दगी को एक समझौता बना दिया !
और उसकी आँखों की हतप्रभता से .
मैं भागने लगा हूँ !
अब तक एक तरफ शक था ,
लालच थी ,
प्रतिस्पर्धा थी ...
और उससे मेरी लड़ाई !
ये कोई लहरों की ध्वनि पर
मेरा नाम ले सकता है
मेरी हथेली पर घरौंदा बना सकता है
मुझे मेरा स्वरुप दिखा सकता है
यह विश्वास तो ख़त्म हो चला था ...
....
पर युगों का पर्दा हटा
जो सत्य मेरे आगे खड़ा है
वह सौ प्रतिशत है ...
सौ प्रतिशत का हिसाब यही होता है
जो इन आँखों में है
यह सत्य जागरण करता है
मंत्रोच्चार करता है
निष्ठा का स्तम्भ बनता है
.......
मेरे समस्त तर्क उसके निकट
बेमानी होते हैं
क्योंकि वह कोई और नहीं
मेरा ही 'मैं' है
मैं उससे दूर भागता हूँ
या ऐसा कुछ करता हूँ
कि वह खुद कहे जाने की बात !
उसके मौन को मैं सुनना नहीं चाहता
मात्र सत्य लेकर मैं क्या करूँगा
संसार तो सत्य से चलता नहीं
और वह
अंगारों पर चलकर मुझसे मिलता है
मैंने देखा है
उसके पांवों में छाले नहीं
........
और मेरे ह्रदय में ज्वालामुखी है !
वह ज्वालामुखी के द्वार पर
निष्कंप खड़ा है
मेरे हर ताप को आत्मसात करने को तत्पर
वह एक उत्तर है
पर मैंने सौ प्रतिशत की बिसात पर
शतरंज के मोहरे डाल
उसे प्रश्न बनाना चाहा है
.........
क्या यह सही बाज़ी है
अपने ही मैं के साथ?
जीवन एक शतरंज ही तो हो गया है.. और हम सब मोहरे.. अच्छी कविता रच रहे हैं सुमन सर..
ReplyDeleteवह सत्य है ...इसीलिए ज्वालामुखी के द्वार पर
ReplyDeleteभी निष्कंप खड़ा है बहुत खूब कहा है आपने यहां पर .....
अपना मैं जब अहम् हो तो उससे दूर जाना चाहिए , जिस मैं' में जीवन का सत्य मिले , उसके साथ कैसी बाज़ी?
ReplyDeleteऔर मेरे ह्रदय में ज्वालामुखी है !
ReplyDeleteवह ज्वालामुखी के द्वार पर
निष्कंप खड़ा है
मेरे हर ताप को आत्मसात करने को तत्पर
वह एक उत्तर है
पर मैंने सौ प्रतिशत की बिसात पर
शतरंज के मोहरे डाल
उसे प्रश्न बनाना चाहा है
.........
अंतर्द्वंद्व को कहती अच्छी प्रस्तुति
और मेरे ह्रदय में ज्वालामुखी है !
ReplyDeleteवह ज्वालामुखी के द्वार पर
निष्कंप खड़ा है
मेरे हर ताप को आत्मसात करने को तत्पर
वह एक उत्तर है
पर मैंने सौ प्रतिशत की बिसात पर
शतरंज के मोहरे डाल
उसे प्रश्न बनाना चाहा है
.........
सुंदर रचना...और भाव भी सुंदर
मेरे ह्रदय में ज्वालामुखी है !
ReplyDeleteवह ज्वालामुखी के द्वार पर
निष्कंप खड़ा है
मेरे हर ताप को आत्मसात करने को तत्पर
वह एक उत्तर है ...
मेरे प्रश्नों का उत्तर बन जाने वाले मैं से बाजी कैसी ...!
मेरे समस्त तर्क उसके निकट
ReplyDeleteबेमानी होते हैं
क्योंकि वह कोई और नहीं
मेरा ही 'मैं' है
जीवन की शतरंज पर शब्दों के मोहरे खूब अच्छे से फिट किये। मैं ही तो सब प्रश्नो को जन्म देती है। सुन्दर रचना । बधाई।
प्रश्नों के कटघरे से निकलने की चाह में
ReplyDeleteमैंने सौ प्रतिशत का हिसाब किया है !
इस सौ प्रतिशत ने
मेरी ज़िन्दगी को एक समझौता बना दिया !
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सुमन जी आपकी कविता ने जिन्दगी के फलसफे को नए अंदाज में अभिव्यक्त किया है ...पर यथार्थ रूप में ....आप इसी तरह प्रगति करें यही शुभकामना है .....और आज आपका आंकड़ा 30 पर पहुँच गया ..आपको शुभकामनायें
लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी
ReplyDeleteमेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...
जिन्दगी के फलसफे को नए ढंग से परिभाषित किया है. अच्छा सृजन है ये. सुन्दर रचना ....
ReplyDeletebahut khub ...
ReplyDeletewaah //
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteज़िंदगी का फलसफा... खूब...
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteआपको महिला दिवस और होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
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कल 09/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!