अर्जुन आज भी
मेरे पास गांडीव रख
दुविधा में है !
मैं कर्मठ,अविचल,अविरल
सार के सन्दर्भ में हूँ
'अर्जुन इसे युद्ध का नाम मत दो
यह मात्र अन्याय का विरोध है
जो हर काल में ज़रूरी है ...'
' प्रश्न के किस महासागर में हो अर्जुन ?
द्यूत क्रीडा के समय तो तुम जीत के नशे में रहे
कुछ नहीं सोचा
और आज प्रश्नों के भंवर में अटके हुए हो ...'
'प्रश्नों के महासागर में तो जन्म लेते
मैं रहा अर्जुन ...
रिश्तों का अदभुत मायाजाल
और मैं अबोध !
देवकी की गोद से निकल
यशोदा के आँचल तले
मैं जितना भाग्यवान रहा
उतना ही कटघरे में रहा ...
किसने नहीं पूछा ,
'किसे माँ कहोगे '
अर्जुन , क्या यह प्रश्न
दोनों माओं के लिए
अनुचित न था ?'
'अन्याय के विरोध में
१४ वर्षीय मैं कृष्ण ,
मामा के समक्ष था ....
तो कहो अर्जुन ,
यह रिश्ता महत्वपूर्ण था
या मुझसे पहले मारे गए
नवजात मेरे अपने ?
....
इन अन्यायों के आधार पर ही
कंस मामा की मृत्यु तय थी
रिश्तों का कैसा व्यर्थ प्रश्न?'
'कितनी व्याकुलता लिए
कितनी आसानी से
तुमने गांडीव रख दिया
और असहाय हो गए !
अर्जुन ,
रथ से पलायन मैं भी कर सकता हूँ
अपने स्वरुप को सीमाबद्ध कर सकता हूँ
सुदर्शन चक्र हटा सकता हूँ ...
क्योंकि मेरा संबंध
इस कुरुक्षेत्र के दोनों छोर पर है
....
न्याय के लिए मैं सारथी हो सकता हूँ
तो अर्जुन
तुम्हें बस यह गांडीव उठाना है
और लक्ष्य साधना है...'
........
विश्वास करो या न करो ,
ReplyDeleteसारथी हमेशा श्री कृष्ण बने
दिया उपदेश............
क्या है छल! क्या है भ्रम!........
विश्वास भरने को नरक का द्वार भी दिखाया...
जिन्हें महारथी माना था,
उनका असली रूप दिखाया
....
निस्सारता का पाठ पढाकर
हारे को हरिनाम दिया...........
achchhi rachna
ReplyDeletebahut khub
बहुत सुन्दर रचना|
ReplyDeleteबेहतरीन!
ReplyDeleteन्याय के लिए मैं सारथी हो सकता हूँ
ReplyDeleteतो अर्जुन
तुम्हें बस यह गांडीव उठाना है
और लक्ष्य साधना है...'
बहुत सार्थक रचना ...आज की परिस्थिति में सोचें तो न तो न्याय दिखता है और न ही सारथी ...
कृष्ण का कर्तव्यनिष्ठ सन्देश ..........बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteसृजन शिखर पर आपका स्वागत है
गीता से प्रेरित बहुत सुन्दर कविता ! सारथी का महत्व बहुत है !
ReplyDeleteअगर कृष्ण जी जैसा सारथी मिल जाये तो जीवन धन्य हो जाये ।
ReplyDeleteबहुत लाजबाव अभिव्यक्ति है। बहुत बहुत आभार सुमन जी।
'अर्जुन इसे युद्ध का नाम मत दो
ReplyDeleteयह मात्र अन्याय का विरोध है
जो हर काल में ज़रूरी है ...'
आपकी लेखनी आपके व्यक्तित्व का पता देती है ......
प्रभाव अलग अलग
गुलाब सौन्दर्य
गेंहू - आटे से रोटी
कैक्टस हर हाल में खड़ा
चुभता हुआ
अद्भुत .....
पढ़ा है .....आगे समझना है ......!!
arjun jab bhaiyya khel rahe the juwa kyon nahi roka
ReplyDeleteरथ से पलायन मैं भी कर सकता हूँ
ReplyDeleteअपने स्वरुप को सीमाबद्ध कर सकता हूँ
सुदर्शन चक्र हटा सकता हूँ ...
क्योंकि मेरा संबंध
इस कुरुक्षेत्र के दोनों छोर पर है
sach to kaha krishna ne........:)
kitna swabhawik likhte ho aap...
hats off........
अन्याय से लड़्ने के लिए गांदीव उठाना ही पड़ता है !
ReplyDeleteबहुत लाजबाव अभिव्यक्ति है।
ReplyDeletebehad shaandar kavya hai....bohot khoob
ReplyDelete'अर्जुन इसे युद्ध का नाम मत दो
ReplyDeleteयह मात्र अन्याय का विरोध है
जो हर काल में ज़रूरी है ...'
क्या आज भी कोई सारथी कृष्ण बन कर आयेगा जो इस देश की डूबती नाव को पार लगा सके। सुन्दर गीता सन्देश। बधाई।
प्रेरक रचना, हार्दिक बधाई।
ReplyDelete---------
आपका सुनहरा भविष्यफल, सिर्फ आपके लिए।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्या जानते हैं?
true.. Yahi seekh di thi shri krishna ne.. Laksya se bhatke vyakti ko margdarshan krti aapki rachna, bahut acchi lagi. :)
ReplyDelete'अर्जुन इसे युद्ध का नाम मत दो
ReplyDeleteयह मात्र अन्याय का विरोध है
जो हर काल में ज़रूरी है ...'
बहुत ही सुन्दर लेखन ...हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई ..।
bahut achhi rachna, shubhkaamnaayen.
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