चाहिए, बस चाहिए
क्या चाहिए इन्हें
नाम - शोहरत
धन - दौलत
मिल जाये तो?
फिर और चाहिए, और, और...
न मिले तो,
कैसे भी चाहिए...
पर इस चाह के पीछे
कौन सी चाह है,
इसे तो समझा ही नहीं
चाह के पीछे थी
तलाश ख़ुशी की
तलाश आनंद और मस्ती की
तलाश उस अद्भुत प्रेम की
पर मिला क्या?
पहुचे कहाँ?
जहाँ न सुख बचा, न आनंद और न प्रेम...
बटोरने कि होड़ ने
सारे संबंधों से दूर कर दिया
अजीब अकेलेपन से घिरे हैं सब आज
गलती हुई?
पर कहाँ ?
आज भी समझ कहाँ पा रहा
क्यूंकि अब भी दोष
दूसरों में ही दूंढ रहा
वाह रे इन्सान वाह
खुद को शैतान बना
अब शैतान को ही दोष दे रहा...
Thursday, August 26, 2010
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जीवन में चाहिए होता है प्यार
ReplyDeleteवही होता है आरम्भ
वही होता है विराम
वही गीत
वही धुन
वहाँ कोई होड़ नहीं
क्योंकि होता है विश्वास का सुकून
ये जो है वो अपना है
"chahat hai itni ki har chahat me mere dum nikle..."
ReplyDeleteaisa hi kuchh suna tha......:)
lekin fir bhi kahan chah marr pati hai.....
bahut khubsurat rachna!!
achha lekhan
ReplyDeletebadhai
चाह के पीछे थी
ReplyDeleteतलाश ख़ुशी की
तलाश आनंद और मस्ती की
तलाश उस अद्भुत प्रेम की..
वाह! अत्यंत सुन्दर रचना! दिल को छू गयी!
suman jee
ReplyDeletepranam !
aap ke blog pe aa kar achcha laga.
sadhuwad ,
saadar
चाह के पीछे थी
ReplyDeleteतलाश ख़ुशी की
तलाश आनंद और मस्ती की
तलाश उस अद्भुत प्रेम की
पर मिला क्या?
पहुचे कहाँ?
जहाँ न सुख बचा, न आनंद और न प्रेम...
मानवीय रिश्तों के प्रति आपके सरोकार संवेदनापूर्ण है .भौतिक सुख के पीछे दौड़ती दुनिया में यही होना है.
विचारणीय प्रस्तुति!
ReplyDeleteशुभकामनाएं..
eiselogo ko vastav me kuchh nahi milta ant me
ReplyDeleteवाह रे इन्सान वाह
ReplyDeleteखुद को शैतान बना
अब शैतान को ही दोष दे रहा..
शैतान भी तो इंसान के अंदर ही है ..... अपने आप को देश दे रहा है ..... बहुत लाजवाब रचना है ....
iss chaahiye ne kabhi to sukh ka ambaar diya, isi chaahiye ne dukh ki agni dee, par iss chaahiye mein koi santusht nahin, aur aur chaahiye...par kitna...fir sab nasht...shyad jiwan yahi hai. achhi rachna. shubhkaamnaayen.
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