चारोँ तरफ,
हर देश कि यही कहानी हो कर रह गयी है I
और इसका कारण है सामाजिक मूल्यों में गिरावट I
और गिरावट के कई कारणों में एक है,
हमारा रातों रात सब पा लेने का दुस्वप्न I
देश खुद से थोड़े ही महान होता है,
किसी भी देश कि महानता उसके देशवासियों से होती है I
पर आज जिस होड़ में, जिस व्याकुलता में इन्सान ने खुद को डाल लिया है,
फिर तो ऐसा होना ही था न ?
कुछ वर्ष पहले तक
हर देश में उसके हीरो थे,
जो त्याग और कर्तव्यपरायणता के प्रतीक थे I
पर आज का हीरो कौन है?
जिसने जैसे भी हो
पैसा, पद, नाम, शोहरत पा लिया है I
सब जानते हैं उसने कैसे अर्जित किया है
पर कहता कोई नहीं
या कहें कहना नहीं चाहता
क्यूंकि कहीं न कहीं उसके दिल में भी
ऐन प्रकरेण सब पा लेने कि चाह सुलग रही है
आज बिरले ही कोई ऐसा दिखता है जो
मूल्यों को जीता है I
सब का नारा एक ही है
क्या करें
जीवन में practical होना पड़ता है I
On Sun, Aug 15, 2010 at 9:26 AM, rashmi prabha
http://wwww.newobserverpost.tk/
सही है- कोई खुद को समझना नहीं चाहता, बस समझाने का ठेका ले रखा है- अब इसे व्यवहारिकता कहें या स्वार्थ ! हर कोई सिर्फ अपने नियम से चलना चाहता है, और यहीं से सबकुछ परिवर्तित होता है- संबंध, देश, काल, ............जो भी कह लें . हमने जहाँ जन्म लिया, वह निःसंदेह हमसे ऊपर था, पर खुद को ऊपर करने के चक्कर में हमने देश को एक प्रश्न बना दिया !
ReplyDeletebas yahi to baat hai ki apne liye har koi ek wajah dhundh leta aur apni baat ko shreshth aur uchit saabit karna chaahta ye kah kar ki practical hona padta hai. aur is prakriya mein kitnon ka haq chhin leta kabhi soch hin nahin pata ya fir sochna hin nahin chaahta. doshi sirf paksh aur vipaksh ki party ko dekar khud ko ek sabhya naagrik kahta. aisa hum sabhi karte aayen hain aur kar rahe hain. nateeza kya hai sab dekh rahe...tukdo tukdo mein bata bharat.
ReplyDeletesaabhar.
सही कहा ....सब कुछ पा लेने की चाह ही इंसान को स्व से ऊपर नहीं उठने देती ..
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
suman ji
ReplyDeletepractical kis baat ke liy, kya ham apne sanskaron ko bhool jaye,kya ham naate -rishtedaaron ko bhool jayen kya ham apne rashtr ko bhool jayen===? nahin----agr esa hota to na ham kuch likh pate aur na hi aap.aur haan jis practical ki aap baat kar rahin hain na agr esa ho poora smaaj ya rashtr ho jayega to kya BHARAT-BHARAT REH PAYEGA?
थोडा व्यवहारिक हुए बिना तो गुजारा भी नहीं है ...
ReplyDeleteमगर जीवन मूल्यों पर टिके रह कर भी व्यवहारिक हुआ जा सकता है ...
येन केन प्रकारेण सबकुछ पा जाने की ख्वाहिश रखने वाले क्या जाने इसे ...!
Question for New Observer Post:
ReplyDeleteCould you,please, explain what you mean by "Kya BHARAT BHARAT RAH PAYEGA". It seems to me that you may be talking of two BHARATS, one that exists today and one that existed earlier.
The word practical, it seems to me, is unnecessarily demonized. You can be practical and ethical at the same time. Life is neither black nor white. It is a shade of gray.
ReplyDeleteपर उपदेश कुशल बहुतेरे--- अच्छा सवाल है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteJab sab Bhrastachar mein hi practical ho jayenge to phir sudhar ki taraf kiski soch jayegi. Batyein Kya BHARAT-BHARAT REH PAYEGA?
ReplyDeleteits a fact ....one thing i have to ask...How we can come out from it???
ReplyDeletebahut sahi kaaha aapne.........:)
ReplyDeletehame aapne follow karne ko majboor kar diya......aage se aate rahunga........
Again, I would draw attention to the word practical, which has several meanings but none of them pertains to "degradation" of moral and ethical values. In actuality, one of the meanings is someone "concerned with voluntary action and ethical decisions ".
ReplyDeleteLet us not muddy the water by equating corruption with a genuine urge for human beings to be practical, that is to actively engage in some course of action or occupation. It is in the interest of mankind for people to be active and practical. Progress would not occur otherwise. All philosophers put their thoughts into action (that is they practiced their thoughts by being practical). We are where we are because people inherently are practical. You can only fathom the depth of the sea when you enter it. You can speculate how deep the sea is going to be.
Correction to my previous post.
ReplyDeleteI said: "You can speculate how deep the sea is going to be."
That was wrong.
I wanted to say:
"You can not speculate the depth of the sea by speculating about it on the seashore".
bahut gambhir sawal uthaya hai is kavita ke maadhyam se !
ReplyDeleteशुष्क..एकदम...किसी गद्य-सी
ReplyDeleteपर गहराई है और बात में दम भी. ये शुश्की यूँ लगने लगी जैसे तपती दुपहरी में कोई खूब भटके और कंठ सूख जाए. परिणाम ??? तभी तो पानी खोजेगा.
अपने आस पास के प्रति सम्वेदनशील हो,आपकी रचना में स्पष्ट दिख रहा है और यही शुरुआत है समाज में परिवर्तन लाने या उसके लिए जागरूकता फ़ैलाने की.
प्यार
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! सही बात कहते हुए उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteसामयिक समाज की स्थिति पर तगड़ा कटाक्ष......
ReplyDeleteआपके विचारों से सहमत हूँ....
बधाई!
वर्तमान विचारधारा पर सटीक व्यंग्य. सब कुछ ऐसा ही है बहुत सही लिखा है. इस लेखन के लिए बधाई.
ReplyDeleteek dam sahi drashtikodatmak soch
ReplyDeletesteek lekhan
badhai
aaj ke daur ka satik chitran...!
ReplyDelete