' मन चंगा तो कठौती में गंगा '
' जैसी दृष्टि वैसी श्रृष्टि '
' पोथी पढ़ी पढ़ी जगमुआ, पंडित भया न कोए,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होए '
ऐसे मुहावरों से वाक्य बनाना कितना आसान है, हैं न?
जीवन भर हम सब इनसे ' वाक्य ' ही तो बनाते आये हैं, है न ?
इनसे वाक्य बना कर, हमने जैसे मान लिया
कि हम इन्हें समझ भी चुके हैं ....
मगर भईया ' समझना ' किसे कहते हैं?
क्या हमारा मन चंगा हुआ?
क्या हमने अपनी दृष्टि पे ध्यान देना सीख लिया ?
क्या प्रेम के ढाई आखर को जाना?
क्या ' समझने ' का मतलब नहीं होता,
किसी बात का 'अनुभव' हो जाना,
अनुभूति के स्तर पे उतर जाना,
आत्म-साध हो जाना ....
जैसे ' बात ' और ' हम ' एक हो गए हों !!!!
अब एक छोटी सी कहानी - ,
पेड़ की एक डाल पे बैठा एक आदमी, उसे ही काट रहा था.
एक गुजरते हुए मुसाफिर ने उसे समझाया,
" जिस डाल पे बैठे हो, उसे मत काटो, गिर जाओगे"
काटनेवाला - " चलो जाओ, तुम्हे कैसे मालूम, क्या तुम ज्योत्षी हो"
मुसाफिर - " अरे इतनी सी बात के लिए ज्योत्षी होना जरुरी नहीं "
" तो फिर जाओ, अपना काम करो, मुझे मालूम है, मैं क्या कर रहा हूँ "
थोड़ी देर बाद, होना क्या था, डाल काटनेवाला जमीन पे आ गिरा.
अब वो सोचने लगा - " जरुर वो मुसाफिर बहुत बड़ा ज्योत्षी रहा होगा,
वरना गिरने से पहले उसने कैसे बता दिया!"
आप सब कहेंगे, बेवकूफ था, गिरना तो था ही -
हा हा हा... हम थोड़े ही वैसे हैं - है न ????
अब मेरा एक अनुरोध आप सब ज्ञानियों से है -
आज आप कुछ भी सोचें, बोलें, करें - जरा उन सब पर नज़र रखें-
अपने बारे में हम कितना कम जानते हैं - समझ जायेंगे.
आज भर, केवल आज भर,
बेफिजूल की बड़ी - बड़ी बातें ना करके,
दूसरों की ज़िन्दगी सुधारने का ठेका ना ले कर,
मात्र दृष्टा बनकर,
अपना ' सूक्षम ' निरीक्षण करें ?
आत्म - ज्ञान हो जायेगा !!!!!!!!!!!!!!!!
सार्थक पोस्ट..... गहन अभिवयक्ति......
ReplyDeleteछोटी छोटी बातों में छिपी बड़ी बड़ी सीख..
ReplyDeletesarthak ...bahut sunder
ReplyDeleteयही एक मार्ग है....
ReplyDelete