सबको कहीं पहुँचना है ….
कहाँ ?
- नहीं मालूम
मगर पहुँचना है ....
कहते हैं
जीवन चलने का नाम है
चलेंगे नहीं तो पहुंचेंगे कैसे …
क्यूंकि सब चल रहे हैं,
इसलिए सब चल रहे हैं....
इसीलिए मुझे भी चलना है,
- मैं भी चल रहा हूँ ....
अच्छा चलो,
पहुँच गए,
जानोगे कैसे
पहचानोगे कैसे
मालूम कैसे होगा ????
- अरे,
उससे फ़रक क्या पड़ता है ?????
किसी को मालूम है क्या????
पर पहुँचना कहाँ है ?????
- हद हो गयी
फिर वोही बात,
कहा न
चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे
पहुँचना
ही है ....
है राहें अनजानी सबकी,
ReplyDeleteपर सबको बढ़ते रहना है।
सच है ...... शुरुआत तो करनी ही होगी...... सुंदर अभिव्यक्ति......
ReplyDeleteआत्मविश्लेषण की तरफ प्रेरित करती आपकी यह रचना एक उतम काव्यकृति है ...!
ReplyDeleteबड़ी उलझन से भरी रचना ... चलना ही जीवन है ..पर कहीं लक्ष्य तो साधना होगा
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteकल 23/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे .. ?..
धन्यवाद!
चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे
ReplyDeletewah, bahut khub vichar...
www.poeticprakash.com
बहुत बढ़िया ... मैंने पहले भी इस पर टिप्पणी की थी .. आज कल तिप्प्नियन गायब हो जाती हैं .
ReplyDeleteजीवन दृष्टि और दर्शन के आसपास तैरती सी रचना. सुंदर.
ReplyDeletebahot pasand aayee......
ReplyDeletepahli baar apke blog par ayi....chalte rahne ki prerna mili
ReplyDeleteगहरा दर्शन है यह रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई...
Successful discovery
ReplyDeletebahut khub...satik lekhan
ReplyDeleteएक अजीब सी भ्रामक अवस्था में पड़े हर मन की दास्तां...... बहुत अच्छी रचना !!
ReplyDelete