Sunday, November 20, 2011

चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे




सबको कहीं पहुँचना है ….

कहाँ ?

- नहीं मालूम

मगर पहुँचना है ....


कहते हैं

जीवन चलने का नाम है

चलेंगे नहीं तो पहुंचेंगे कैसे …

क्यूंकि सब चल रहे हैं,

इसलिए सब चल रहे हैं....

इसीलिए मुझे भी चलना है,

- मैं भी चल रहा हूँ ....


अच्छा चलो,

पहुँच गए,

जानोगे कैसे

पहचानोगे कैसे

मालूम कैसे होगा ????


- अरे,

उससे फ़रक क्या पड़ता है ?????

किसी को मालूम है क्या????


पर पहुँचना कहाँ है ?????

- हद हो गयी

फिर वोही बात,

कहा न


चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे

पहुँचना

ही है ....

14 comments:

  1. है राहें अनजानी सबकी,
    पर सबको बढ़ते रहना है।

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  2. सच है ...... शुरुआत तो करनी ही होगी...... सुंदर अभिव्यक्ति......

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  3. आत्मविश्लेषण की तरफ प्रेरित करती आपकी यह रचना एक उतम काव्यकृति है ...!

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  4. बड़ी उलझन से भरी रचना ... चलना ही जीवन है ..पर कहीं लक्ष्य तो साधना होगा

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  5. बहुत ही अच्‍छी अभिव्‍यक्ति ...

    कल 23/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे .. ?..
    धन्यवाद!

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  6. चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे

    wah, bahut khub vichar...

    www.poeticprakash.com

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  7. बहुत बढ़िया ... मैंने पहले भी इस पर टिप्पणी की थी .. आज कल तिप्प्नियन गायब हो जाती हैं .

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  8. जीवन दृष्टि और दर्शन के आसपास तैरती सी रचना. सुंदर.

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  9. गहरा दर्शन है यह रचना...
    सादर बधाई...

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  10. एक अजीब सी भ्रामक अवस्था में पड़े हर मन की दास्तां...... बहुत अच्छी रचना !!

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