Friday, December 3, 2010

का करूँ सजनी

क्या करूँ प्रिये
प्यार के लिए
इन दिनों
वक़्त ही नहीं मेरे पास...

आज कल मेरा
कर्त्तव्य - सप्ताह चल रहा है
एक के बाद एक
कर्त्तव्य पूरे करने में लगा हूँ...

मुझे सिखाया गया है -
कर्तव्य और जिम्मेवारियां
प्यार से ऊपर हैं...
परिवार - समाज
व्यक्तिगत जीवन से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण ...

पर हंसी भी आती है,
जब सोचता हूँ,
क्या यही परिवार - समाज
जिसकी दुहाई देते सब थकते नहीं
किसी कमजोर वक़्त में
कभी खड़ा भी हुआ है किसी के साथ ...

इतिहास गवाह है
अब तक तो नहीं
किसी बहाने हो
इसने अपने हाथ हमेशा हाँथ छुड़ा लिए....

कहते हैं
अपनी ख़ुशी का सोचने वाला स्वार्थी होता है
और फिर
प्यार के लिए
वक़्त क्या चाहिए
प्यार तो प्यार है
कभी भी किया जा सकता,  है न ????

अपना उल्लू सीधा करने को
कुछ भी कह सकते हैं लोग

हम ही अपनी धुन
अपनी खुशफहमी में
भूल जाते हैं -
हमारे ख्वाब ही हमारी पूंजी हैं
हमारा प्यार ही हमारी जिंदगी
और यह जिंदगी ही तो बस हमारी थाती है

जाने कब जिंदगी की शाम हो जाये
और... और ....

18 comments:

  1. उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
    न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ....
    ..........
    अब उस गली की यात्रा है
    जहाँ बस आज है
    यूँ भी कल पे भरोसा नहीं होता
    आज के भी कदम थरथराने लगे हैं

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  2. एक बड़ा सा हुजूम होता था
    बने बनाये
    तथाकथित अपनों का
    सवालों का दौर ...
    जिसमें 'प्यार' की प्रधानता होती ...

    'प्यार क्या है ?'
    और जवाब ....
    एक नशा, एक कशिश , होता ही नहीं ...
    जाने कितने जवाब !
    मुझ तक आते मैं मैं नहीं रह जाती थी
    जाने कितनी रूहें मेरी रूह में पनाह लेतीं
    और मैं कहती 'प्यार एक पूजा'
    और अनकहे भाव सुवासित हो उठते
    ईश्वर की मुंदी पलकों में हलचल होता
    मंदिर से घंटियों की आवाज़
    मस्जिद से अजान के स्वर उगते
    ....
    और सभा दरखास्त हो जाती ...

    उम्र के इस ख़ास पड़ाव में
    जहाँ दुनियादारी की भीड़ में
    सारे अर्थ बेमानी हो उठते हैं
    वहाँ दुनियादारी निभाना ही मुझे नहीं आया
    आज भी रूहें मुझे जगाती हैं
    और प्यार की कहानियाँ सुनाती हैं
    सुनते सुनते मेरा पूरा शरीर बसंत हो जाता है
    और झड़ते हरसिंगार कहते हैं
    'प्यार एक पूजा...'
    वर्ना मैं यूँ क्यूँ खिलता रातों को
    और सुबह टपकता
    ताकि तुम चुन लो मुझे
    और पूजा के सिंहासन तक ले चलो
    ........
    मैं भी कोई फूल बन जाना चाहती हूँ
    प्यार के लिए
    आज भी मैं वही हूँ
    वही मेरी चाह !!!
    यही मेरा कर्तव्य , यही मेरा अधिकार
    यही मेरा परिवार, यही है समाज !

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  3. कहते हैं
    अपनी ख़ुशी का सोचने वाला स्वार्थी होता है
    और फिर
    प्यार के लिए
    वक़्त क्या चाहिए
    प्यार तो प्यार है
    कभी भी किया जा सकता है न ....

    यूं तो पूरी रचना ही बेहतरीन हैं लेकिन यह पंक्तियां लाजवाब हैं ....।

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  4. bahut seedhe saadhe se tark jo shayad her aam-o-khaas ke dil mein utthte hein..... bahut khoobsurati se shabdon ki mala mein piro diye hein...! :)

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  5. "हम ही अपनी धुन
    अपनी खुशफहमी में
    भूल जाते हैं -
    हमारे ख्वाब ही हमारी पूंजी हैं
    हमारा प्यार ही हमारी जिंदगी
    और यह जिंदगी ही तो बस हमारी थाती है

    जाने कब जिंदगी की शाम हो जाये
    और... और ....!"

    सच कहा आपने, ज़िन्दगी के सन्दर्भ में आपकी अभिव्यक्ति बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित है, अच्छी लगी कविता !

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  6. एपार्टमेंट की छत पर
    मिली थी थोड़ी सी जगह
    गुनगुनी धूप सकने को
    तरंगित होने लगी यादे //

    अब तो सपनों जैसा ही है
    पिताजी की गोद में बैठकर
    अलाव सेकना //

    मैं नहीं दे पाया
    अपने बच्चो को वैसा प्यार
    जैसा मैंने पाया अपने पिता से
    इन गगनचुम्बी ईमारतों में रहकर //

    हम खोते जा रहे है
    रिश्तों में गर्माहट देने की कला
    जो हमारी विरासत थी //

    ....meri ek rachna //
    mere bhi blog par padharee//
    http://babanpandey.blogspot.com

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  7. बिलकुल सही कहा आपने, "हमारे ख्वाब ही हमारी पूंजी हैं
    हमारा प्यार ही हमारी जिंदगी" ये समझ लें तो जिंदगी क्या खूब बन जाएँ. साथ में रश्मि जी के कमेंट्स की तारीफ करना चाहुगी. बस लगा जैसे आपके सवालों का जवाब उनकी सरल भाषा में मिल गया. और इससे अच्छा क्या हो सकता है.

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  8. रचना बहुत सुन्दर है .. जिंदगी के अनुभवों को अच्छी तरह से संजोया गया है !

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  9. "हम ही अपनी धुन
    अपनी खुशफहमी में
    भूल जाते हैं -
    हमारे ख्वाब ही हमारी पूंजी हैं
    हमारा प्यार ही हमारी जिंदगी
    और यह जिंदगी ही तो बस हमारी थाती है

    जाने कब जिंदगी की शाम हो जाये
    और... और ....!"
    bबहुत ही सुन्दर पँक्तियाँ है। बधाई इस कविता के लिये।

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  10. हम अपनी खुशफहमी में भूल जाते हैं ...
    हमारे ख्वाब ही हमारे अपने है ...
    ख्वाब हकीकत की जमीन पर दम तो देते हैं ...

    पर हंसी भी आती है
    जब सोचता हूँ
    क्या यही परिवार - समाज
    जिसकी दुहाई देते सब थकते नहीं
    किसी कमजोर वक़्त में
    कभी खड़ा भी हुआ है किसी के साथ ...

    सचुमच कई बार हंसी आती तो है ....
    छिप कर इस दिल में तन्हाई पलती है ..कहने को सब है लेकिन ...
    ये जिंदगी तो हमारी थाती है
    और जाने कब इसकी शाम हो जाए ...
    ...जाने कब !

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  11. "हम ही अपनी धुन
    अपनी खुशफहमी में
    भूल जाते हैं -
    हमारे ख्वाब ही हमारी पूंजी हैं
    हमारा प्यार ही हमारी जिंदगी
    और यह जिंदगी ही तो बस हमारी थाती है
    bilkul sahi kaha aapne...jisne ye bat samajh lee uski jindagi sampoorn ho gayee...bhavuk rachna

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  12. aur.. Aur??
    Aur bahut kuch.. Zindagi pyaar pr hi nhi chalti pr still u need it, its n essential part of life..

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  13. bahut behtreen bhaav liye sundar rachna.aapke blog se jud rahi hoon milte rahenge.

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  14. वाह किन लफ़्ज़ो मे तारीफ़ करूँ एक सुन्दर अहसास से भरपूर रचना।

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  15. बहुत खूबसूरत उत्तम रचना....
    सादर...

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  16. बहुत ही बहतरीन रचना...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत हैhttp://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  17. sahi baat hai ujaale apni yaadon ke hamare sath rehne do...baaki to bas andhera hi hai..meelon tak...bahut khoob kaha sarkar...

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