जिस डाल पे बैठे हैं हम, उसे ही जाने अनजाने काट रहे?
विश्वास नहीं होता न?
समाज के प्रति अपनी उदासीनता हमे छोड़नी ही पड़ेगी
वरना....
न जाने कल, आज के कितने मासूमों की हाथों में
बन्दूक होने की जिम्मेवारी हमारी होगी
क्षमा करें,
यह किसी मायूस शायर की परिकल्पना नहीं....