Friday, January 27, 2012

आत्म - केन्द्रित

हम सब कहते हैं बचपन के दिन भी क्या दिन थे.... है न ?
सब कुछ कितना सरल था, जो माँ कहती वही पापा कहते, वही काका बताते जो नाना ने सुनाया था, रिक्शा वाले भईया भी वही दुहराते जो क्लास में टीचरजी समझातीं. विचारों में कहीं कोई विरोधभास नहीं. एक समरसता में जीवन बीता था. 
और अब? 
बचपन को अपनी अपनी विचारधारा से प्रभावित करने की जैसे होड़ लगी है. सब अपनी सोच को जीना चाहते हैं और अगर किसी कारण नहीं जी पा रहे तो, अपने वर्चस्व की लड़ाई में, प्यार और सूझ भूझ के नाम पर, बच्चों का  बेहिचक इस्तेमाल हो रहा है. 
माँ कहती है " मैं जो कह रही वही सही है - पापा? उनकी तो बात ही मत करो वो बिलकुल व्यवहारिक नहीं,  तुम मेरी सुनो और आराम से जियो. मैंने उनकी सुनने की जो गलती करी उसके लिए आज तक पछता रही हूँ. और हाँ, अगर उन्होंने कुछ कहा तो तुम चिंता मत करना मैं उनको देख लूंगी".
पापा समझाते हैं - "बेटा, मैंने माँ से ज्यादा दुनिया देखी है. अपने जीवन को सवारों, मेरी कही करते जाओ और फिर देखो!!"
रिक्शा वाले भईया तो कोई रहे ही नहीं - रिक्शा वाला हो गया! फिर बड़े काका, बुआ मौसी नाना नानी दादाजी दादी पड़ोस के चाचा की क्या बिसात. वैसे कुछ होशियार अगर बोल कर विचार व्यक्त नहीं करते या कर पाते तो अपने आपको ऐण प्रकरेण समझा के ही दम लेते हैं, ब्लॉग है न? Face book है न? हार गए तो स्वनिर्मित स्वकेंद्रित अहंकार का क्या होगा!!
बच्चों के सामने ही सारे समय - परिवार के ही एक दूसरे की, अड़ोसी पड़ोसी की, समाज की, कभी सरकार की शिकायत चलती रहती है, और फिर उनसे कहा जाता है - मन लगा कर पढ़ो, हर काम को अच्छे से करो. इन मासूमो के अन्दर क्या चल रहा, इसकी जरा भी भनक ज्यादातर लोगों को आज है क्या? एक असुरक्षा की  मनः स्थिति में इनका बचपन गुजर रहा है. 
जिसके कारण ये बिचारे जितना हो सके घर से दूर रहने लगे हैं. दूर रहना इनकी लाचारी होती जा रही है, दोस्तों के साथ कोई शिकायत तो नहीं होती न, ऐसा करो वैसा मत करो का भाषण तो नहीं होता न.
और 'यह मेरी ज़िन्दगी है ....' - ' मैं आज में जी लूँ....' सूक्ष्म रूप से उनके भीतर भविष्य के प्रति अनिश्तिता से उत्पन हो रही है. बड़े बुजुर्गों को बच्चों के सामने एक पक्षिये विचार रखने से परहेज करना ही होगा!!!!
बच्चों को शतरंज की मोहरे बनाकर सब अपनी गोटी लाल करने में लगे हैं. 
हंसी इस बात पे और भी आती है कि जो अपनी ज़िन्दगी में शायद ही कुछ 'सकारात्मक' हासिल कर रहे हों, या कर पाए हों, वो भी अपनी उम्र और रिश्तों की दुहाई देकर, इन मासूमों के कंधे से बन्दूक चला रहे हैं. 
बच्चे भी कम नहीं हैं, वे भी असाधारण गुणों से लैस हैं, आखिर 21वी सदी के जो हैं. It's My Life इनका मूल मंत्र है, जबरदस्त सामयिक ज्ञान है और अपने फायदे नुकसान को बखूबी समझते हैं. मौके का इस्तेमाल - तो जैसे ईश्वर ने घुट्टी में पिलाकर भेजा है. 
नतीजा - सारी परिभाषाएं ही गडमड होती जा रही है (हो चुकी हैं का इस्तेमाल मैं जान भूझ के नहीं कर रहा क्यूंकि अब भी बहुत कुछ बचा हुआ है और बचाया जा सकता है) बस हमे थोड़ा आत्म निरिक्षण करने की जरुरत है. थोड़ा खुद को सर्व ज्ञानी समझने से परहेज करने की जरुरत है.         
क्या हम अपने मासूमो के लिए इतना त्याग कर सकते हैं????????????   
 
      

Thursday, January 26, 2012

प्यार एहसास है शब्द नहीं



जिसे कहा जा सके 
व्यक्त किया जा सकता हो 
तो वो कभी प्यार था ही नहीं ....

एक आत्मकेंद्रित व्यक्ति का 
खुद से लगाव 
और खुद को खुद पे न्योछावर 
करने की अभिव्यक्ति थी ....

जीवन जीने की कला


 Sri Sri Ravi Shankar's Speaks :
With satsang, sadhana and seva our faith becomes very strong!

More happiness we share with others, more happiness we experience. Do you agree with it? Don’t just say yes. First you think and if you agree, then accept that. One can travel the whole world, but only in the Indian tradition you will see that even when the best of knowledge is spoken, one says, ‘You think about it, only if you find it’s right, then accept it.’

After reciting 18 chapters of The Bhagvad Gita, Lord Krishna tells Arjuna, ‘You think about it, analyze it, if it appeals to your mind and if you agree then you accept it. ’This means the strength that is within us; the strength of the soul is what gives us this freedom. So now we have to utilize it in the right direction. So whenever we are happy and joyful, we should make an effort to spread this happiness, this joy to minimum ten other people. Will you all do it? Everybody? In my opinion each person has the capability to give happiness to a thousand people. Each one of you can bring light to the lives of a thousand people or more.

Like I said, spirituality is the only way through which we can be free from depression. Whether our society gets freedom from misconduct, corruption, injustice or not, we must spread spirituality. In every house, we must tell people to meditate, to get together and have satsang. In which ever village, people have gotten together and done satsang, all negativities have gone away. Mahatma Gandhi had once desired for an honest society that is now becoming a reality in many villages in India. Even in Gujarat, in many villages, this work is ongoing where people have left alcohol, drugs and with much joy and love are serving others.
 
One thing that is very important for you to remember: 
In everyday life, you may experience some lack here and there. Your mind gets upset or someone has tears in their eyes… this is all part of life, which keeps happening. It has never been like everything in life is perfect, ideal or rosy-rosy. It has never been like that, but to deal with problems we need strength and patience and that comes through sadhana. Don’t think of life as separate from sadhana, your life itself is your sadhana. Understand this and move forward. Don’t think that just by closing my eyes for a few minutes and doing something, Sadhana is done. No! Whatever you do, walking, moving about, getting up or sitting down, smiling or getting angry, whatever you do in life is sadhana. We need to look from this perspective and then we experience so much relief. When in yourself, this cool breeze of relief and peace starts to flow then you will see how people around you will also start to feel the same. Already many people are feeling it, isn’t it?

It is said that devotion was born in Tamil Nadu, raised in Karnataka and blossomed in Gujarat. So here in Gujarat, devotion blossomed and became complete. Where is the blossoming of devotion? It is in service! We must do as much seva as we can. This does not mean we have to do what we cannot do. No. We have to do as much as is possible for us; and there is nothing as big or small service, the fruit of all service is the same. We must not feel that I have to do that service which is important or big, no, what is important is to have the feeling to be of help to others, and we serve with that feeling. It is in your nature to help and youare helping by doing that. That’s it!

If any of you are feeling ‘I am doing a lot of seva, remove that from your mind today. Who are you doing seva for? Without doing something we cannot live. That’s why we are doing something and if others are benefiting by us doing something, then it is a very good thing, isn’t it. So we must not feel proud of our seva or proud of our good qualities, this is what we need to offer into the fire of knowledge. So offer your negative qualities, also offer your good qualities and good actions, and live life smiling, feeling light and at the same time being immersed into the depths of knowledge.

You don’t have to work very hard to achieve love and peace in your life; this is easily achieved in a state of rest and such rest we can experience when there are no small botherations lingering in the mind. Then you experience deep rest; and desires linger in your mind when you do not have faith. When you are thirsty then only the desire for water arises, but what will happen if you sit and think about water all day? Do you understand what I am saying? What does desire mean? A lack of faith that I am going to get what I need. So with satsang, sadhana and seva, our faith becomes very strong and all work gets done like it’s getting done in your lives right now.

How many of you have experienced that what you desire is getting fulfilled? So whatever you desire is getting fulfilled, then you should desire for big things. What is the use of desiring for small things? There is no fun in that.

I am not saying do this, do that, I am saying do nothing. Now just five minutes before I said spread happiness, now I am saying you don’t have to do anything. Just relax… the contradiction between these two states only is life. That’s why if you read the Gita you will understand everything is contradictory. Gita is our very life; it is not only a holy text. Gita is for everybody, it is our life and in life there are contradictions.

Wednesday, January 11, 2012

संत का घर है राजा का महल नहीं


आज दिल के बहुत करीब एक सूफी कहानी लेकर आया हूँ:

किसी जंगल में एक सूफी संत अपनी पत्नी के साथ रहता था।
एक रात, जोर की बारिश हो रही थी। लगभग आधी रात को किसी ने उनका दरवाजा खटखटाया।
संत ने पत्नी से, जो की दरवाजे के पास सो रही थी, दरवाजा खोल कर देखने को कहा। पत्नी ने झल्ला कर कहा - "हमारी झोपड़ी इतनी छोटी है, हम दोनों के ही सोने की जगह है, अगर कोई हुआ तो हम उसकी क्या मदद कर सकते हैं?
संत ने कहा " ये एक संत का घर है, राजा का महल नहीं जो छोटा पड़ जाये। जरुर कोई भटका राही होगा। ये जंगल खूंखार जानवरों से भरा है, दरवाजा खोल कर उसे अन्दर ले लो।"
राही ही था, उसने बताया कि वो अँधेरे के कारण रास्ता भटक गया था " वर्ना इतनी रात को आप लोगों को परेशान
नहीं करता।"
संत ने कहा "अन्दर आ जाओ दो लोगों के सोने की जगह है, इसमें तीन तो आराम से बैठ सकते हैं। हम लोग तो कहीं जाते वाते नहीं, तुमसे ही दुनिया की कुछ खबर मिल जाएगी।"
तीनो आराम से बैठ गए और बातें करने लगे। थोड़ी देर बाद फिर दस्तक हुई। संत ने राही से दरवाजा खोल कर देखने को कहा तो राही नाराज होकर बोला - "यहाँ तीन लोग पहले से बैठे हैं, हम अब क्या मदद कर सकते हैं?"
संत - "मत भूलो थोड़ी देर पहले तुम उसी स्थिति में थे, अरे ये राजा का महल नहीं जो कितना भी बड़ा हो, हमेशा छोटा पड़ जाता है, संत की कुटिया है, सब के लिए जगह हो जाती है, दरवाजा खोलो और उसे अन्दर ले लो। अभी तक हम फ़ैल कर बैठे थे, अब हम एक दूसरे के थोड़ा नजदीक बैठ जायेंगे, एक दूसरे से थोड़ी गर्मी भी मिलती रहेगी।"
पहले राही ने दरवाजा खोल दिया तो भटका राही क्षमा मांगते हुए अन्दर आ गया। संत आराम से गाते रहा।
थोड़ी देर बात फिर दस्तक हुई, सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे। सबको मालूम था कोई राही ही होगा और संत अन्दर लेने को कहेगा ही।
संत ने समझाया - "अब तक हम चारोँ पास पास बैठे थे, अब हम आराम से खड़े हो जायेंगे।"
दरवाजा खोल कर नए राही को भी अन्दर ले लिया गया। थोड़ी देर बाद दरवाजे पर फिर कुछ आवाज हुई, पर आवाज कुछ अलग तरह की थी। सबने हैरत से संत की ओर देखने लगे
संत ने बताया - " पास ही एक गधा रहता है, रोज रात मेरे गाने सुनने आता है, वही होगा, बेचारा भींग रहा होगा, दरवाजा खोल कर उसे अन्दर ले लो। अरे इसमें परेशानी क्या है? मत भूलो थोड़ी देर पहले तुम सब किस स्थिति में थे। थोड़ी देर की ही तो बात है, सुबह होने ही वाली है।"
दरवाजा खोल कर गधे को भी अन्दर ले लिया गया। सब अब गधे के चारोँ ओर खड़े हो गए, संत बेफिक्री से गाते रहा
और गधा अपने अंदाज़ में सुनता रहा। सुबह होने पर सबने संत का धन्यवाद किया।
संत ने बड़े प्यार से कहा "धन्यवाद् कैसा? आप सब हमारे घर आये, हमे कृतार्थ किया, आपके आने से हम ही अनुग्रहित हुए हैं।"