लोग हमारे रिश्ते को
एक नाम देकर
निश्चिन्त होना चाहते हैं
वो जानते हैं
रिश्तों के दायरे होते हैं
और दायरों में पड़ा इंसान
खतरनाक नहीं होता
उन्हें परेशानी है
तुम्हारी ललाट पे पड़े बेख़ौफ़ जुल्फों से
तुम्हारी शोख चाल से
उन्हें उलझन है
तुम्हारी धीमी मुस्कराहट से
जैसे तुम कुछ कह रही हो
कुछ अनकहा भी सुन रही हो
उन्हें परेशानी है
मेरे बेख़ौफ़ इरादों से
घंटों तुम्हारी तस्वीर पे नज़रें टिकाये रहने से ..
वो जानना चाहते हैं
हमारा रिश्ता....
चाहते हैं
एक नाम देकर निश्चिन्त हो जाना
उनसे कहो
पूछें जाकर
चकोर से,
समुद्र की लहरों से,
क्या है उनका रिश्ता
चाँद से....
मगर ये बेचारे भी क्या करें ?
कुछ रिश्ते
बस अनाम होते हैं
बस होते हैं
और इनके नाम नहीं होते ....