सबको कहीं पहुँचना है ….
कहाँ ?
- नहीं मालूम
मगर पहुँचना है ....
कहते हैं
जीवन चलने का नाम है
चलेंगे नहीं तो पहुंचेंगे कैसे …
क्यूंकि सब चल रहे हैं,
इसलिए सब चल रहे हैं....
इसीलिए मुझे भी चलना है,
- मैं भी चल रहा हूँ ....
अच्छा चलो,
पहुँच गए,
जानोगे कैसे
पहचानोगे कैसे
मालूम कैसे होगा ????
- अरे,
उससे फ़रक क्या पड़ता है ?????
किसी को मालूम है क्या????
पर पहुँचना कहाँ है ?????
- हद हो गयी
फिर वोही बात,
कहा न
चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे
पहुँचना
ही है ....